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मकई की रोटी स्वास्थ्यवर्धक

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 # आमतौर पर बिहार में बनने वाली मकई की रोटी दो वैरायटी की होती है उत्तर बिहार में मकई की जो रोटी बनाई जाती है दरअसल वह भुने हुए मकई के आटा से तैयार किया जाता है। इस कारण से उसकी रोटी हाथ पर ही ठोक कर तैयार की जाती है जो काफी मोटी होती है पकाने के बाद उसका कलर पीला हो जाता है खाने में वह मोटी रोटी की जैसी लगती है पर थोड़ा सा सोंधा टाइप का जिसे उत्तर बिहार में लोग लाल मिर्च की अचार या फिर दही के साथ खाना पसंद करते हैं लेकिन मध्य बिहार में मकई की रोटी कच्ची मकई के आटे से तैयार की जाती है या रोटी की तरह ही बेलकर तवे पर पकाई जाती है इस कारण से इसका कलर उजला होता है और दूर से देखने पर आपको लगेगा कि आप गेहूं की रोटी खा रहे हैं कच्चे मकई के आटे से तैयार इस रोटी को पकाने के बाद घी का जबरदस्त इस्तेमाल किया जाता है जिस कारण से यह पूरी तरह से पक्के तैयार होता है और टेस्ट भी ज्यादा होता है यहां पर लोग इसे साग के साथ ही खाना पसंद करते हैं खासकर मकई के रोटी का कंबीनेशन पूरी तरह से सरसों के साथ के साथ बना हुआ है पर अब परियों और शादियों में भी मकई की रोटी नजर आने लगी है लोगों के खाने का टेस्ट बदला ...

आज की आवश्यकता मोटा अनाज

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  एक समय था जब सांवा,कोदो, ज्वार ,मड़ुआ,जौ,जई , मकुनी,बाजरा इत्यादि अनाज ही खाए जाते थे।    बुजुर्ग कहते थे कि "मोटा मेही (अनाज) खाओ ,डॉक्टर दूर भगाओ "  हमारे बुजुर्ग यही खाते थे और निरोगित शरीर सहित सौ साल तक जीते थे।   अब जैसे जैसे खान पान बदला लोगों के शरीर को मानो घुन लग गया हो ,तमाम बीमारियाँ जकड़ रहीं हैं आयु आधी होती जा रही है।  बुढ़ाकर अपनी आयु पूरी करके तो किसी की मृत्यु ही नहीं होती है बल्कि हार्ट अटैक, कैंसर, ब्रेन हैमरेज, सुगर जैसी बीमारियों से अकाल मृत्यु हो रही है।   पहले हम लोगों के घर पर बारिश के समय में जब बरसीम ,चरी,बाजरा ज्वार जैसे हरे चारे खत्म हो जाते थे उस समय पशुओं के लिए सांवा ज्वार बोया जाता था।  जो पशुओं का हरा चारा बनता था और जब उसमें बालियां लगती थीं तब पक्षियों को भोजन भी मिल जाता था।   मां कुछ सांवा बचा लेती थी ताकि अगले वर्ष बीज के काम आए और कभी कभी जब ज्यादा बीज से अधिक हो जाता था तब उसका चावल बनाती थी। कच्चे चावल को दूध में भिगोकर खाते थे बहुत मीठा और स्वादिष्ट लगता था।   मेरी माँ बतात...

चीना(चीणा एक स्वस्थ वर्धक फसल

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 🍁चीना(चीणा ) शायद अब ये फसल विलुप्त हो चुकी है या बहुत कम मात्रा में उगाई जा रही है, कई वर्षों से देखा नही इस फसल को❣️ 🌾चीना का भात खाने का जिसे भी सौभाग्य मिला है वह जानता है कि यह कितना टेस्टी होता है। पहले यह चावल का विकल्प था। इसको खाने में सबसे बड़ी सावधानियां है कि अगर आप इसे दाल या दही के साथ खा रहे हैं तो अपनी अपने साथ रखिए। चीना भारत में उगाई जाने वाली महत्वपूर्ण लघु फसल है। फसल जल्दी पकने के कारण सूखे से बचने में सक्षम है। अपेक्षाकृत कम पानी की आवश्यकता वाली कम अवधि की फसल (60 -90 दिन) होने के कारण, यह सूखे की अवधि से बच जाती है और इसलिए शुष्क भूमि क्षेत्रों में गहन खेती के लिए बेहतर संभावनाएं प्रदान करती है। असिंचित परिस्थितियों में, बाजरा आमतौर पर खरीफ मौसम के दौरान उगाया जाता है, लेकिन जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है, वहां उच्च तीव्रता वाले चक्रों में ग्रीष्म फसल के रूप में इसे लाभप्रद रूप से उगाया जाता है।यह एक सीधा शाकीय वार्षिक पौधा होता है जो प्रचुर मात्रा में उगता है। इसका पौधा 45-100 सेंटीमीटर की ऊंचाई तक बढ़ता है। तना स्पष्ट रूप से सूजे हुए गांठो...

कैसे कैलेंडुला उगाए

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 कैलेंडुला (Calendula) को अभी बीज से उगाने का बेस्ट टाइम चल रहा हैं। इसे उगाने के लिए एक भाग मिट्टी, एक भाग वर्मीकम्पोस्ट और एक भाग कोकोपीट/ रेत लेंगे। फिर किसी गमले या सीडलिंग ट्रे में इस पोटिंग मिक्स को भर लेंगे और उसके ऊपर कैलेंडुला के बीजों को चारों तरफ बिखेर देंगे। फिर इसी पोटिंग मिक्स की एक पतली सी लेयर से बीजों को कवर कर देंगे। इसके बाद पानी डालकर गमले/ सीडलिंग ट्रे को सेमी-शेड वाली जगह पर रख देंगे, जहां हल्की इनडायरेक्ट सनलाइट आती हो। 5 से 6 दिनों के बाद बीज अंकुरित हो जायेगें। जब पौधे थोड़े बड़े हो जाए तो उन्हें किसी दूसरे गमले में ट्रांसप्लांट कर दें। अभी इसके बीज लगा लेंगे तो पूरी सर्दियाँ आपका गार्डन फूलों से भरा रहेगा। ऐसे ही गार्डनिंग टिप्स के लिए पोस्ट को Like करके इस पेज को Follow जरूर करें, धन्यवाद  #calendula #winterflower #plantcare #gardening #gardeningtips साभार देवेंद्र प्रताप सिंह देव फेस बुक वॉल 

अंतरिक्ष तक यात्रा कर चुके इस गुणकारी अनाज से अनजान हैं पृथ्वी के ज्यादातर लोग

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 #रामदाना : अंतरिक्ष तक यात्रा कर चुके इस गुणकारी अनाज से अनजान हैं पृथ्वी के ज्यादातर लोग ! #आवाज_एक_पहल ----------------++++++++++++-------------++++++ 3 अक्टूबर, 1985 को अपनी पहली यात्रा करने वाले स्पेस शटल अटलांटिस में रामदाना भेजा गया था। चालक दल के सदस्यों ने अंतरिक्ष में रामदाना को अंकुरित करने का एक्सपेरिमेंट किया और नासा के शेफ ने मिशन के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों के खाने के लिए रामदाना की कुकीज़ तैयार की थी।  हालांकि जो रामदाना अंतरिक्ष की सैर कर चुका है उसके बारे में पृथ्वी पर कम ही लोग जानते होंगे। अब तो भूले-बिसरे ही याद आता है हमें रामदाना. उपवास के लिए लोग इसके लड्डू और पट्टी खोजते हैं. पहले इसकी खेती का भी खूब प्रचलन था. मंडुवे यानी कोदों के खेतों के बीच-बीच में चटख लाल, सिंदूरी और भूरे रंग के चपटे, मोटे गुच्छे जैसे दिखने वाली फसल चुआ (चौलाई) होती थी जिसके पके हुए बीज रामदाना कहलाते हैं. जब पौधे छोटे होते थे तो वे चौलाई के रूप में हरी सब्जी के काम आते थे. तब पहाड़ों में मंडुवे की फसल के साथ चौलाई उगाने का आम रिवाज था. यह तो शहर आकर पता लगा कि रामदाना के लड्डू और...

Macron unveils new right-wing French government

The new cabinet pulls in allies from the centre and right, despite left-wing parties winning France's election.

Trump says too late for another debate as Harris pushes for second clash

Kamala Harris had "gladly" accepted CNN's invitation to debate two weeks before the election.