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नारमन इ बोरलाग

नारमन इ बोरलाग एक ऐसे ब्यक्ति का नाम है जो जीवन पर्यंत मानव जाती के लिए भूख से लड़ता रहा इस ऋषि को भारत सहित दुनिया के अनेक देश के लोग इन्हें हरित क्रांती का जनक कहते है २० वी सदी की इस क्रांति ने तीसरी दुनिया की करीब एक अरब कुपोषित आबादी को दो जून की रोटी उपलब्ध कराई डा बोरलाग को इस कार्य हेतु १९७० में नोबेल विश्व शांति पुरस्कार दिया गया इस वैज्ञानिक को भारत का अन्नदाता भी कहा जाता है और दुनिया इन्हें प्यार से प्रो व्हीट कहती है इनका जन्म २५ मार्च १९१४ को हुआ १९३९ इन्होने विश्विद्यालय से बी एसी करने के बाद १९४२ में पी यच डी की डिग्री प्राप्त करने के बाद १९४४ में मेक्सिको में गेहूं शोध से जुड़े उस समय गेहूं की उत्पादकता बहूत कम थी पुरे विश्व में लगभग आकाल की स्थिति थी परन्तु इस वैज्ञानिक ने हार न मानते हुए गेहूं के मोटे और छोटे ताने के विकाश के लिए १९५३ में नोरिन -१० नामक गेहूं की एक जापानी किस्म को अधिक उपजाऊ अमेरिकी किस्म बेबर -१४ से संकरण कराया इस प्रकार लगभग तीन गुना अधिक उत्पादन वाली जातीय प्राप्त हुयी जिससे भारत सहित अन्य विकाश शील देशो में खाद्य समस्या हल हुई हम इस ऋष...

जीवन प्रत्याशा में हर साल 3 महीने की वृद्धि हो रही है

ब्रिटेन की एक बैग यह प्रसिद्ध वैज्ञानिक का दावा है कि जीवन का 150 वां बसंत देखने वाला आदमी तो पहले ही जन्म ले चुका है लेकिन यह तो कुछ भी नहीं अगले दशकों में ऐसे कई पहले व्यक्ति पैदा होंगे जो उम्र के 1000 में पड़ाव तक पहुंचेंगे लोग भले ही इस बात पर विश्वास ना करें लेकिन डॉक्टर डी ग्रे नामक इस वैज्ञानिक को पूरा विश्वास है कि उनके ही जीवन काल में बैठ डॉक्टरों के पास वह सभी साधन और औजार होंगे जिससे वे बुढ़ापे का इलाज करने में पूरी तरह सक्षम होंगे बायोमेडिकल जेंटो लार्जेस्ट तथा अध्यक्षता पर पिछले कई वर्षों से शोध करने वाले संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक डॉक्टर डि gre  का दावा है कि ऐसा संभव होगा तमाम तरह की बीमारियों को समाप्त कर ऐसा करने से जीवन को अनिश्चित काल  के लिए बढ़ाया जा सकता है तब आदमी उम्रदराज तो होगा ना है वह स्पष्ट है इस समय जीवन प्रत्याशा में हर साल 3 महीने की वृद्धि हो रही है और विशेषज्ञों का मानना है कि वर्ष 2030 में 100 वर्ष की उम्र पार करने वाले की संख्या कई लाख में होगी इस समय दुनिया में सबसे ज्यादा जीने वाला व्यक्ति कार्यकाल 122 वर्ष का है जापान में वर्ष 2010 में 4...

रोबोटिक इंसान

आने वाले समय में इंसान में मशीन का कम्बीनेशन एक साथ हो सकता है कभी स्वास्थ्य कारणों से तो कभी सेना में जरूरत के लिए रोबोटिक कंकालों पर शोध होता है. बीते दशक में इंसान के शरीर की ही तरह हरकतें करने में सक्षम रोबोटिक हाथ, पैर और कई तरह के बाहरी कंकाल विकसित किए जा चुके हैं.पूरी तरह रोबोटिकआइला नाम की यह मादा रोबोट दिखाती है कि एक्सो-स्केलेटन यानि बाहरी कंकाल को कैसे काम करना चाहिए. जब किसी व्यक्ति ने इसे पहना होता है तो आइला उसे दूर से ही नियंत्रित कर सकती है. आइला को केवल उद्योग-धंधों में ही नहीं अंतरिक्ष में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.हाथों से शुरु जर्मनी में एक्सो-स्केलेटन पर काम करने वाला डीएफकेआई नाम का आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस रिसर्च सेंटर 2007 में शुरू हुआ. शुरुआत में यहां वैज्ञानिक रोबोटिक हाथ और उसका रिमोट कंट्रोल सिस्टम बनाने की ओर काम कर रहे थे. तस्वीर में है उसका पहला आधुनिक प्रोटोटाइप. बेहद सटीक डीएफकेआई ने 2011 से दो हाथों वाले एक्सो-स्केलेटन पर काम शुरू किया. दो साल तक चले इस प्रोजेक्ट में रिसर्चरों ने इंसानी शरीर के ऊपरी हिस्से की कई बारीक हरकतों की अच्छी नकल कर पाने ...

विश्व की सबसे खतरनाक बीमारी को मात

अमेरिका के एक ऐसे व्यक्ति ने विश्व की सबसे खतरनाक बीमारी को मात देखकर चिकित्सा जगत को समर्पित कर दिया था वह दुनिया का ऐसा पहला मरीज है जिसके शरीर में एचआईवी वायरस पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं 45 वर्षीय तिमोथी रे ब्राउन के लिए इसे किस्मत की ही बात कहेंगे कि दरअसल व एड्स के अलावा एक और प्राण घातक बीमारी एक प्रकार का ब्लड कैंसर से पीड़ित थे के इलाज के लिए उनके शरीर में एक बार बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया गया है उसी के बाद उनका एड्स भी ठीक होने लगा अब उनके शरीर में एचआईवी वायरस पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं डॉक्टरों ने इस अनोखी घटना को फंग्शनल चोर का 9995 में ब्राउन के शरीर में एचआईवी वायरस के संक्रमण के बारे में पता लगा था वह ल्यूकेमिया से जूझ रहे थे तब वह जर्मनी में रहते थे बर्लिन में 2007 में हुए बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन ने उनकी जिंदगी बदल दी वैज्ञानिकों का मानना है कि उनके शरीर में जिसका बोन मैरो प्रस्तावित किया गया उसके अंदर रहे होंगे जो के जरिए पहुंच गए और वह काकेशियाई मूल का रहा होगा यूरोप स्थित काकेशिया पर्वत इसके आसपास रहने वाले लोग के माने जाते हैं होते हैं और उत्तर पश्चिम एशिया...

अवचेतन मन और विज्ञान

टैलीपैथी;क्या है हमारे पुराणों में वर्णित है की देवता लोग ;आपस में बातचीत ;बिना कुछ ;कर लेते थे | और सोचते थे दूसरे ;लोगो ;के पास;सन्देश ;जाता था धर्म और विज्ञान ने दुनिया के कई तरह के रहस्यों से पर्दा उठाया है। विज्ञान और टेक्नोलॉजी के इस युग में अब सब कुछ संभव होने लगा है। मानव का ज्ञान पहले की अपेक्षा बढ़ा है। लेकिन इस ज्ञान के बावजूद व्यक्ति की सोच अभी भी मध्ययुगीन ही है। वह इतना ज्ञान होने के बावजूद भी मूर्ख, क्रूर, हिंसक और मूढ़ बना हुआ है।खैर, आज हम विज्ञान की मदद से हजारों किलोमीटर दूर बैठे किसी व्यक्ति से मोबाइल, इंटरनेट या वीडियो कालिंग के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं, लेकिन प्राचीन काल में ऐसा संभव नहीं था तो वे कैसे एक दूसरे से संपर्क पर पाते थे? मान लीजिये आप समुद्र, जंगल या रेगिस्तान में भटक गए हैं और आपके पास सेटेलाइट फोन है भी तो उसकी बैटरी डिस्चार्च हो गई है ऐसे में आप कैसे लोगों से संपर्क कर सकते हैं?दरअसल, बगैर किसी उपकरण की मदद से लोगों से संपर्क करने की कला को ही टेलीपैथी कहते हैं। जरूरी नहीं कि हम किसी से संपर्क करें। हम दूरस्थ बैठे किसी भी व्यक्ति की वार्ता को सु...

कैंसर के खिलाफ लड़ने के लिए इम्यूनोथेरेपी के जरिए नया इलाज

ताजा शोध से पता चला है कि कुछ ट्यूमर या कैंसर के अंदर ही प्रतिरक्षा कोशिकाओं की "फैक्ट्रियां" होती हैं. जो शरीर को कैंसर के खिलाफ लड़ने में मदद करती हैं.हाल के वर्षों में डॉक्टरों ने कैंसर के खिलाफ लड़ने के लिए इम्यूनोथेरेपी के जरिए नया इलाज खोजा है. इसमें शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत कर उन्हें ट्यूमर से लड़ने लायक बनाया जाता है.यह तकनीक तृतीयक लिम्फॉइड संरचनाएं (टीएलएस) इस इलाज में कारगर साबित हुई हैं. हाल के वर्षों में, डॉक्टरों ने कैंसर, इम्यूनोथेरेपी के नए उपचार की ओर रुख किया है, जो ट्यूमर से लड़ने के लिए शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का लाभ उठाकर काम करता है. साइंस जर्नल "नेचर" में इस उपचार से संबंधित तीन शोध प्रकाशित हुए हैं. जो दुनिया के अलग देशों के वैज्ञानिकों की ओर से आए हैं.शोध में बताया गया है कि श्वेत रक्त कोशिकाएं या टी-सेल्स ट्यूमर को मारने का काम कैसे करती हैं. कैंसर कोशिकाओं को पहचानने और उन पर हमला करने के लिए यह "प्रशिक्षित" होती हैं. हालांकि यह उपचार केवल 20 प्रतिशत रोगियों पर ही बेहतर काम कर रहा है. शोधकर्ता यह समझने की कोशिश कर रहे...

क्या एक दिन आप 3डी प्रिंटर पर बनी कार चलाएँगे

क्या एक दिन आप 3डी प्रिंटर पर बनी कार चलाएँगे? कार टेकनोलॉजी से जुड़े ताज़ा शोध इस पूरे उद्योग में क्रांतिकारी बदलाव लाने जा रहे हैं और ये बिलकुल संभव है कि आप आने वाले समय में 3डी प्रिंटर पर बनी कार ही चलाएँ.अमरीकी ऊर्जा विभाग की प्रयोगशाला ओक रिज नेशनल ने 3डी प्रिंटर पर न केवल स्पोर्ट्स कार बनाई बल्कि 2015 के डीट्रॉयट ऑटो शो में इसे प्रदर्शित भी किया है.पहली नजर में तैयार की गई शेलबी कोबरा कार आम स्पोर्ट्स कार जैसी ही लगती है, चाहे ये प्लास्टिक से बनी है. हालांकि ये स्टील से भी बनाई जा सकती है.इसमें कहीं भी स्टील के पैनल का इस्तेमाल नहीं हुआ है. ये कार 85 मील प्रति घंटे की रफ्तार से चलाई जा सकती है थ्री-डायमेंशनल तरीके से कार प्रिंटिंग?थ्री डायमेंशनल प्रिटिंग वो नई तकनीक है जिसके इस्तेमाल में पहले कंप्यूटर में डिज़ाइन बनाया जाता है.फिर उक्त कमांड के ज़रिए 3डी प्रिंटर, या ये कहें कि इंडस्ट्रियल रोबोट उस डिज़ाइन को, सही पदार्थ (मेटीरियल) का इस्तेमाल करते हुए परत दर परत प्रिंट करता है या बनाता है.इस प्रयोग में पिघले हुए प्लास्टिक का इस्तेमाल करते हुए उसे मनचाहा आकार दिया जाता है. ऐसा म...