वन डे ई विल डे नामक कामशास्त्री ने अपनी पुस्तक आइडियल मैरिज में आसनों के वर्गीकरण का आधार स्त्री व पुरुष के शरीर की स्थिति को बताया है जबकि महर्षि वात्सायन नामक कामशास्त्री ने अपनी पुस्तक कामसूत्र में आसनों का उच्चतरतोपयोगी नीचरतो पयोगी के रूप में विभाजित किया है जो अधिक व्यवहारिक व वैज्ञानिक है हमारे विचार से विभिन्न आसनों का विभाजन या वर्गीकरण करने का प्रयास ना तो पूर्णता सफल है ना ही विशेष आवश्यक है वास्तव में आसनों का विभाजन करना बहुत कठिन कार्य है इंद्रधनुष में कौन सा रंग कहां से प्रारंभ होता है और कहां समाप्त कहना कठिन है तथापि स्वयं इंद्रधनुषी छटा बड़ी मनोहारी और चिता चिता कर सकती है इसी तरह से काम के आकाश में छाए मिथुन की विविध आसन होते तो फिर दाग राही और अलौकिक आनंद की वर्षा करने वाले ही हैं फिर भी सुविधा की दृष्टि से प्रमुख व्यवहारिक आसनों को निम्नलिखित वर्गों में उनके गुण और दोष देते हुए वर्गीकृत किया गया है प्रथम वर्ग उत्तान वे आसन जिसमें स्त्री पीठ के बल लेट थी और पुरुष सामने से ऊपर आकर मिथुन करता है द्वितीय वर्ग आनत वे अपन जिसमें स्त्री पेट के बल पर लेटती है और पुरुष पीस के ऊपर आकर मैथुन करता है तृतीय वर्ग बीपरी तक वे आसन जिसमें पुरुष पीठ के बल लेट का है और स्त्री सामने की ऊपर आकर संभोग करती है चतुर्थ वर्ग तिर्यक वे आसन जिनमें करवट के बल लेटकर मैथुन किया जाता है पंचम वर्ग उप बिष्ट वह आसन बैठकर मैथुन किया जाता है षस्टम वर्ग वह आसन जिसमें खड़े होकर मिथुन किया जाता है
कत्यूरी शासन 2500 वर्ष पूर्व से 700 ईस्वी तक रहता है कत्यूरी राजाओं की राजधानी पहले जोशीमठ थी बाद में कार्तिकेयपुर। उस समय कहा जाता है, कि उनका साम्राज्य सिक्किम से लेकर काबुल तक था। दिल्ली रोहिलखंड आदि प्रांत में भी कत्यूरी राज्य शासन की सीमा के अंदर आते थे। इतिहासकार अलेक्जेंडर कनिंघम ने भी इसका अपनी पुस्तक में जिक्र किया है। कत्युरी क्षेत्र ने प्रसिद्धि चंद राजाओं के काल में पाई। महाभारत में यह लिखा है, कि जब युधिष्ठिर महाराज ने अपने प्रतापी भाई भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव को विजय के लिए भेजा तो उस समय उनका युद्ध यहां पर कई जाति के क्षत्रियों से हुआ था। और वे लोग राजसूय यज्ञ में नजराना लेकर गए थे। कत्यूरी सम्राट शालिवाहन:- लगभग 3000 वर्ष पूर्व शालिवाहन नामक राजा कुमाऊँ में आए। वे कत्यूरियों के मूल पुरुष थे। पहले उनकी राजधानी जोशीमठ के आसपास थी। राजा शालिवाहन अयोध्या के सूर्यवंशी राजपूत थे। अस्कोट जो कि वर्तमान में पिथौरागढ़ में स्थित है, खानदान के राजबार लोग, उनके वंशज है, कहते हैं कि वह अयोध्या से आए थे और कत्यूर में बसे। कत्युरी राजा कार्तिकेयपुर से गढ़वाल का ...
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