स्वप्न मैं श्वेत तरल के स्खलित होने को स्वप्नदोष कहा जाता है अत्यधिक हस्तमैथुन अत्यधिक संभोग से यह रोग हो जाता है हमेशा यही समझा जाता है कि इस कारण धात रोग जाने का रोग हो जाता है साधारण सा लोग यह समझते हैं कि श्वेत सरल उस समय जो स्खलित होता है वह वीर्य होता है प्रयोग द्वारा सिद्ध हो गई है कभी-कभार को छोड़कर स्वप्नदोष में वीर्य का स्खलन नहीं होता बल्कि वह अधिकतर प्रोस्टेट या काऊपर ग्रंथों का स्त्राव होता है इस बात का प्रयोग हर कोई सफलतापूर्वक कर सकता है कि रोगी का का स्वप्नदोष स्खलित कौन सा तरल स्खलित हुआ है यदि वीर्य होगा तो उस पर में वीर्य अवश्य होंगे यदि प्रोस्टेट ग्रंथि का तरल होगा उसमें एक प्रकार की कलमें ऐसी होंगी एक अति उत्तम श्रेणी का सूक्ष्मदर्शी लेकर उसकी जांच की जा सकती है अत्यधिक पंपोष का वार्षिक कार्य है कि हस्तमैथुन आपसे प्रोस्टेट ग्रंथि बिगड़ जाती है उसमें इतनी शक्ति नहीं रहती है कि थोड़ी सोते जरा को सॉफ्ट कर सके इसलिए स्वप्न में कोई गंदा विचार आते ही सरल साबित हो जाता है युवकों को स्वप्नदोष प्रायर 13 से 14 वर्ष की आयु में प्रारंभ होता है यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है दिमाग में तीन से चार बार ऐसा हो जाए तो कोई रोग नहीं समझा जाना चाहिए जब की संख्या इतनी बढ़ जाए दुर्बलता अनुभव होने लगे तो इसे रोक समझ गई थी चिकित्सा करनी चाहिए स्मरण रहे या कोई भयानक य असाध्य रोग नहीं है इस रोग वीर्य की अधिकता अत्यधिक मैथुन या संभोग कारण इस प्रकार से होते हैं मादक पदार्थ जैसे मदिरा अत्यधिक भोजन करके या दूध पीकर सोना वर्षों तक संभोग की इच्छा को दबाए रखना या अविवाहित होना गंदे विचार खट्टे गर्म और मसालेदार वस्तुओं का अत्यधिक प्रयोग गुदामैथुन की प्रवृत्ति पेट के कीड़े शारीरिक दुर्बलता प्रोस्टेट ग्लैंड या मूत्राशय की खराब अश्लील साहित्य पढ़ना गंदे चित्र देखना मन में हर समय रतिक्रिया के विचार रखना स्त्रियों के सर्किल में अधिक रहनाा भय चिंता इन सभी कारणों को रोककर स्वप्नदोष से बचा जा सकता है
कत्यूरी शासन 2500 वर्ष पूर्व से 700 ईस्वी तक रहता है कत्यूरी राजाओं की राजधानी पहले जोशीमठ थी बाद में कार्तिकेयपुर। उस समय कहा जाता है, कि उनका साम्राज्य सिक्किम से लेकर काबुल तक था। दिल्ली रोहिलखंड आदि प्रांत में भी कत्यूरी राज्य शासन की सीमा के अंदर आते थे। इतिहासकार अलेक्जेंडर कनिंघम ने भी इसका अपनी पुस्तक में जिक्र किया है। कत्युरी क्षेत्र ने प्रसिद्धि चंद राजाओं के काल में पाई। महाभारत में यह लिखा है, कि जब युधिष्ठिर महाराज ने अपने प्रतापी भाई भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव को विजय के लिए भेजा तो उस समय उनका युद्ध यहां पर कई जाति के क्षत्रियों से हुआ था। और वे लोग राजसूय यज्ञ में नजराना लेकर गए थे। कत्यूरी सम्राट शालिवाहन:- लगभग 3000 वर्ष पूर्व शालिवाहन नामक राजा कुमाऊँ में आए। वे कत्यूरियों के मूल पुरुष थे। पहले उनकी राजधानी जोशीमठ के आसपास थी। राजा शालिवाहन अयोध्या के सूर्यवंशी राजपूत थे। अस्कोट जो कि वर्तमान में पिथौरागढ़ में स्थित है, खानदान के राजबार लोग, उनके वंशज है, कहते हैं कि वह अयोध्या से आए थे और कत्यूर में बसे। कत्युरी राजा कार्तिकेयपुर से गढ़वाल का ...
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