सत्यानाशी
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सत्यानाशी जैसा नाम सुनकर आपको थोड़ा अजीब-सा लग रहा होगा कि यह क्या चीज है या सत्यानाशी का प्रयोग किन कामों में किया जाता होगा? कुछ लोग ऐसा भी सोच सकते हैं कि जिस पौधे का नाम ही सत्यानाशी है वह केवल नुकसान ही पहुंचाती होगी, लेकिन अगर आप भी ऐसा ही सोच रहे हैं तो आपकी सोच गलत है। सच यह है कि सत्यानाशी एक बहुत ही गुणी पौधा है और सत्यानाशी का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। कितना भी पुराना घाव, खुजली, कुष्ठ रोग आदि हो, आप सत्यानाशी का प्रयोग कर रोग से छुटकाारा पा सकते हैं।
आयुर्वेदिक किताबों में भी यह बताया गया है कि सत्यानाशी कफ-पित्त दोष को खत्म करती है। इसके दूध, पत्ते के रस, बीज के तेल से घाव और कुष्ठ रोग में लाभ होता है। इसकी जड़ का लेप करने से सूजन ठीक होती है। सत्यानाशी का प्रयोग कर आप बुखार, नींद ना आने की परेशानी, पेशाब से संबंधित विकार, पेट की गड़बड़ी आदि में भी फायदा ले सकते हैं।
■सत्यानाशी के औषधीय प्रयोग, प्रयोग की मात्रा एवं विधियां ये हैंः-
●रतौंधी में सत्यानाशी से लाभ:
सत्यानाशी पंचांग से दूध निकाल लें। 1 बूंद (पीले दूध) में तीन बूंद घी मिलाकर आंखों में काजल की तरह लगाने से मोतियाबिंद और रतौंधी में लाभ होता है।
●सफेद दाग में सत्यानाशी से फायदा:
सत्यानाशी फूल को पीसकर अथवा सत्यानाशी दूध का लेप करने से सफेद दाग में लाभ होता है।
●आंखों के रोग में सत्यानाशी से फायदा:
1 ग्राम सत्यानाशी दूध को 50 मिली गुलाब जल में मिला लें। इसे रोजाना दो बार दो-दो बूंद आंखों में डालें। इससे आंखों की सूजन, आंखों के लाल होने आदि नेत्र विकारों में फायदा होता है।
2-2 बूंद सत्यानाशी के पत्ते के रस को आंखों में डालने से सभी प्रकार के नेत्र रोग में लाभ होता है।
●सांसों के रोग और खांसी में सत्यानाशी का उपयोग लाभदायक:
500 मिग्रा से 1 ग्राम सत्यानाशी जड़ के चूर्ण को गर्म जल या गर्म दूध के साथ सुबह-शाम पिलाने से कफ बाहर निकल जाता है। इससे
सांसों के रोग और खांसी में लाभ होता है।
इसका पीला दूध 4-5 बूंद बतासे में डालकर खाने से लाभ होता है।
दमे की बीमारी में सत्यानाशी का प्रयोग फायदेमंद है। सत्यानाशी का उपयोग करना ब्रोन्कियल अस्थमा के इलाज में फायदा पहुंचाता है, क्योंकि इसमें एंटीएलर्जिक गुण पाया जाता है। इस गुण के कारण ही यह अस्थमा के लक्षणों को कम करने में मदद करता है।
सत्यानाशी पंचांग का रस निकालकर उसको आग पर उबालें। जब वह रबड़ी के समान गाढ़ा हो जाय तब 500 मिली रस, 60 ग्राम पुराना गुड़ और 20 ग्राम राल मिलाकर, खरल कर लें। इसकी 250 मिग्रा की गोलियां बना लें। 1-1 गोली दिन में तीन बार गर्म पानी के साथ लेने से दमे में बहुत लाभ होता है।
●पेट के दर्द में सत्यानाशी के प्रयोग से लाभ:
सत्यानाशी के 3-5 मिली पीले दूध को 10 ग्राम घी के साथ मिलाकर पिलाने से पेट का दर्द ठीक होता है।
●जलोदर में सत्यानाशी के उपयोग से फायदा:
5-10 मिली सत्यानाशी पंचांग रस को दिन में 3-4 बार पिलाने से पेशाब खुलकर आता है तथा जलोदर रोग में लाभ होता है।
2-3 ग्राम बनाएं में सत्यानाशी तेल की 4-5 बूंदें डालकर सेवन करने से भी लाभ होता है।
●पीलिया रोग में सत्यानाशी से लाभ:
10 मिली गिलोय के रस में सत्यानाशी तेल की 8-10 बूंद डाल लें। इसे सुबह और शाम पिलाने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
●मूत्र-विकार में सत्यानाशी से फायदा:
पेशाब में जलन हो तो सत्यानाशी के 20 ग्राम पंचांग को 200 मिली पानी में भिगो लें। इसका काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पिलाएं। इससे मूत्र विकारों में लाभ होता है।
●सिफलिस रोग में सत्यानाशी का उपयोग फायदेमंद:
5 मिली सत्यानाशी पंचांग रस में दूध मिला लें। इसे दिन में 3 बार पिलाने से सिफलिस रोग में लाभ होता है।
●सुजाक में सत्यानाशी का प्रयोग लाभदायक:
सुजाक में सत्यानाशी फायदा पहुंचाती है। सुजाक में 2-5 मिली पीले दूध को मक्खन के साथ लें।
इसके अलावा आप इसके पत्तों के 5 मिली रस को 10 ग्राम घी में मिला भी ले सकते हैं। दिन में दो-तीन बार देने से सुजाक में लाभ होता है।
●कुष्ठ रोग में सत्यानाशी के प्रयोग से लाभ:
कुष्ठ रोग और रक्तपित्त (नाक-कान अंगों से खून बहने की समस्या) में सत्यानाशी के बीजों के तेल से शरीर पर मालिश करें। इसके साथ ही 5-10 मिली पत्ते के रस में 250 मिली दूध मिलाकर सुबह और शाम पिलाने से लाभ होता है।
●त्वचा रोग में सत्यानाशी का प्रयोग:
सत्यानाशी पंचांग के रस में थोड़ा नमक डालकर लम्बे समय तक सेवन करने से त्वचा के विकारों में लाभ होता है। रोजाना 5 से 10 मिली रस का सेवन लाभकारी होता है।
●दाद में सत्यानाशी का उपयोग:
सत्यानाशी में एंटीफंगल गुण पाया जाता है, इसलिए दाद की समस्या में इसका उपयोग फायदेमंद है। एंटीफंगल गुण होने के कारण ये दाद के लक्षणों को कम करके दाद को और फैलने से रोकती है। इसके लिए सत्यानाशी की पत्तियों का रस या तेल को दाद वाली जगह पर लगाएं।
●विसर्प रोग में सत्यानाशी से लाभ:
विसर्प रोग में भी सत्यानाशी से पकाया तेल लगाने से लाभ होता है। सत्यानाशी के फायदे त्वचा में दाने और खुजली से राहत दिलाने में मदद करते हैं।
◆घाव सुखाने के लिए सत्यानाशी का प्रयोग:
सत्यानाशी के दूध को घाव पर लगाने से पुराने और बिगड़े हुए घाव ठीक होते हैं।
सत्यानाशी रस को घाव पर लगाने से घाव ठीक हो जाता है।
सत्यानाशी दूध को लगाने से कुष्ठ तथा फोड़ा ठीक होता है।
सत्यानाशी पंचांग के पेस्ट को पीसकर पुराने घाव एवं खुजली में लगाने से लाभ होता है।
छाले, फोड़े, फुंसी, खुजली, जलन, सिफलिस आदि रोग पर सत्यानाशी पंचांग का रस या पीला दूध लगाने से लाभ होता है।
◆चोट और रक्तस्राव में सत्यानाशी का उपयोग:
सत्यानाशी दूध को घाव या चोट वाले स्थान पर लगाएं। इससे चोट लगने से होने वाला रक्तस्राव बंद हो जाता है।
●रोम छिद्र की सूजन में सत्यानाशी के उपयोग से फायदा:
सत्यानाशी के बीजों को काली मिर्च तथा सरसों के तेल में पीसकर लेप करें। इससे रोम छिद्र की सूजन तथा मुहाँसे की परेशानी में लाभ होता है।
●सत्यानाशी के बीजों को पीसकर लगाने से सोयरायसिस में लाभ होता है।
●दर्द से राहत दिलाती है सत्यानाशी:
सत्यानाशी तेल की 10 बूंदों को एक ग्राम सोंठ के साथ मिलाकर सेवन करने से शरीर के सभी अंगों के दर्द ठीक हो जाते हैं।
●इस्नोफिलिया में सत्यानाशी के प्रयोग से लाभ:
इस्नोफिलिया के रोगी को भी सत्यानाशी पंचांग के चूर्ण की 1 ग्राम मात्रा को दिन में दो बार दूध से प्रयोग करें। इससे लाभ होता है।
●नपुंसकता के इलाज में सत्यानाशी के फायदे:
नपुंसकता कई कारणों से हो सकती है जिसमें शुक्राणुओं को कमी को सबसे प्रमुख कारण बताया गया है। आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार सत्यानाशी में शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने का गुण पाया जाता है। इसलिए अगर आप शुक्राणुओं की कमी के कारण निःसंतान हैं तो सत्यानाशी का उपयोग करना आपके लिए फायदेमंद है।
●मलेरिया के बुखार में आराम पहुंचाती है सत्यानाशी:
एक रिसर्च के अनुसार सत्यानाशी में एंटीपैरासाइट की क्रियाशीलता पायी जाती है। जिसकी वजह से यह मलेरिया के लक्षणों को कम करने में सहायक है। इसलिए मलेरिया के इलाज में आप इसका उपयोग कर सकते हैं। खुराक संबंधी जानकारी के लिए नजदीकी आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें।
■सत्यानाशी के उपयोगी भाग
पंचांग
पत्ते
फूल
जड़
तने की छाल
दूध
■सत्यानाशी का इस्तेमाल कैसे करें?
चूर्ण – 1-3 ग्राम
दूध- 5-10 बूंद
तेल – 10-30 बूंद
रस – 5-10 मिली
अधिक लाभ के लिए सत्यानाशी का प्रयोग चिकित्सक के परामर्शानुसार करें।
●सत्यानाशी से नुकसान
सत्यानाशी का उपयोग करते समय ये सावधानियां रखनी चाहिएः-
●सत्यानााशी के बीजों का केवल शरीर के बाहरी अंगों पर ही प्रयोग ही करना चाहिए, क्योंकि यह अत्यधिक विषैले होते हैं।
●इसके बीज की मिलावट सरसों के तेल में करते हैं जिसके प्रयोग से मृत्यु तक हो सकती है।
इसलिए सत्यानाशी का प्रयोग करते समय विशेष सावधानी बरतें।
नोट- सत्यानाशी के बारे में दी गयी यह समस्त जानकारी पतंजलि के आचार्य बालकृष्ण द्वारा बताई गई जानकारी के अनुसार है, किसी भी प्रकार के प्रयोग से पूर्व किसी डॉक्टर/वैद्य से परामर्श अवश्य कर लें।
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