कार्तिकेयपुर राजवंश: कुमाऊँ का शौर्य और स्वर्णिम धरोहर
कार्तिकेयपुर राजवंश: कुमाऊँ का शौर्य और स्वर्णिम धरोहर
भारत की पर्वतमाला हिमालय के मध्य भाग में फैला उत्तराखंड केवल प्राकृतिक सौंदर्य का भंडार नहीं, इतिहास के अनगिनत रत्न भी यहीं छिपे हैं। इन्हीं रत्नों में से एक है कार्तिकेयपुर राजवंश, जिसे कत्युरी राजवंश भी कहा जाता है।
यह वंश कुमाऊँ का सबसे प्राचीन और शक्तिशाली शासक वंश माना जाता है। कहा जाता है कि इस वंश का नाम भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय (कुमार) के नाम पर पड़ा, इसलिए यह वंश स्वयं को सूर्यवंशी और शिव-भक्त मानता था।
कालखंड और विस्तार
| प्रमुख अवधि | राज्य का विस्तार |
|---|---|
| लगभग 7वीं शताब्दी से 11वीं शताब्दी | कुमाऊँ, कुमाऊँ से आगे नेपाल के पश्चिमी भाग तक |
कत्युरी शासकों ने अपनी राजधानी बागेश्वर क्षेत्र में बसे कार्तिकेयपुर (कत्यूर घाटी) में स्थापित की।
उनका साम्राज्य आज के:
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उत्तराखंड का कुमाऊँ क्षेत्र
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नेपाल के कंचनपुर, डोटी, बैतड़ी आदि
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गढ़वाल के कुछ हिस्सों
तक फैला हुआ था।
प्रमुख राजा
| राजा का नाम | विशेषता |
|---|---|
| कात्युरेश्वर / शालिवाहन | वंश के प्रारंभिक शक्तिशाली शासक |
| निहस पाल, कर्चलदेव | साम्राज्य विस्तार |
| बृहत्पाल | कला और मंदिर निर्माण का स्वर्णकाल |
| अभयपाल | कत्युरियों का अंतिम बड़ा शासक |
बाद में यह वंश अनेक छोटी शाखाओं में विभाजित हुआ और छोटी-छोटी रियासतों के रूप में जारी रहा, जैसे:
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अस्कोट के राजवंश
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दानपुर के राजवंश
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डोटी के राजा (नेपाल)
कत्युरियों का स्थापत्य और संस्कृति
यह वंश मंदिर निर्माण कला का बड़ा संरक्षक रहा।
उनकी शैली को कत्युरी शैली कहा जाता है।
प्रमुख मंदिर
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बैजनाथ मंदिर परिसर, बागेश्वर
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कटारमल सूर्य मंदिर, अल्मोड़ा
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बग्नाथ मंदिर, बागेश्वर
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भुवनेश्वर महादेव, पिथौरागढ़
इन मंदिरों में पत्थर की महीन नक्काशी, शिलालेख और गरुड़ प्रतिमाएं कत्युरी स्थापत्य की पहचान हैं।
⚔️ राज्य के पतन का कारण
11वीं शताब्दी के बाद राजवंश में आंतरिक कलह बढ़ी, साम्राज्य विभाजित हुआ और समय के साथ चंद वंश मजबूत होकर कुमाऊँ का अधिपति बन गया।
यद्यपि शासन समाप्त हुआ, पर वंश की विभिन्न शाखाएँ आज भी:
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उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र
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नेपाल के पश्चिमी जिलों
में क्षत्रिय परंपरा के रूप में जानी जाती हैं।
वंशगत पहचान
कत्युरी स्वयं को
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सूर्यवंशी क्षत्रिय
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भगवान शिव एवं सूर्य उपासक
के रूप में मानते रहे हैं।
गोत्र और कुलदेव विशेष शाखाओं के अनुसार बदलते हैं, क्योंकि वंश विभाजित होकर अनेक परिवारों में फैल गया।
निष्कर्ष
कार्तिकेयपुर या कत्युरी राजवंश पर्वतीय भारत का गौरव है।
इनके द्वारा स्थापित मंदिर-संस्कृति आज भी जीवित है और हर पत्थर अपने भव्य अतीत की कहानी सुनाता है।
हिमालय की गोद में जन्मा यह वंश भले ही सत्ता से विदा हुआ, पर इतिहास ने इन्हें सदैव के लिए अमर कर दिया।
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