सिंधु सभ्यता का जीवंत बालाजी विश्वनाथ मंदि
सिंधु सभ्यता का जीवंत बालाजी विश्वनाथ मंदिर
स्थान: बिहटा बुजुर्ग, कानपुर नगर, उत्तर प्रदेश
भारत की प्राचीनता सदियों की धूल में छिपे रहस्यों से भरी है। उन्हीं रहस्यों के बीच चमकता है बिहटा बुजुर्ग का बालाजी विश्वनाथ मंदिर, जिसे कई शोधकर्ता सिंधु घाटी सभ्यता काल से जोड़ने की संभावना व्यक्त करते हैं। खास बात यह है कि यह मंदिर आज भी जीवित पूजा स्थल है, इसलिए इसे भारत का सबसे प्राचीन जीवंत मंदिर होने का दावा किया जाता है!
यह क्यों इतना अनोखा है?
वीडियो स्रोत के अनुसार कुछ प्रमुख तर्क दिए जाते हैं—
पशुपति नाथ शैली की मूर्ति
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शिव की मूर्ति में वैसी ही आकृति दिखाई देती है जैसी मोहनजोदड़ो की सीलों पर प्रसिद्ध “पशुपति योगी” में मिलती है
12 स्तंभों वाला प्राचीन वास्तु
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यह शैली कई अन्य प्राचीन संरचनाओं से संबंध का संकेत देती है
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मान्यता है कि यह स्थान प्राचीन तीर्थ मार्गों का केंद्र रहा होगा
सरस्वती नदी के बहाव के संकेत
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शोधों में इस क्षेत्र से सरस्वती नदी की शाखाओं के प्रमाण मिलने की बात कही गई है
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यानी यह भूमि कभी नदी संस्कृति का प्रमुख केंद्र रही होगी
अर्ध-सूर्य चिह्न और कलाकृतियाँ
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मंदिर की दीवारों पर उकेरे गए प्रतीक इसे
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गुप्त काल
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कुषाण काल
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राजा हर्षवर्धन के समय
तक की निरंतरता से जोड़ते हैं
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आक्रांताओं से चमत्कारिक बचाव
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कहा जाता है कि यह मंदिर झाड़ियों से ढँक जाने के कारण
मुगल काल की विनाश लीला से बच गया
जैसे इतिहास ने स्वयं इसे संरक्षित कर लिया
क्यों दावा किया जाता है कि यह महाभारत काल से भी प्राचीन है?
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इसके प्रतीकों में वैदिक और सिंधुकालीन कला दोनों की झलक
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सदियों तक पूजा परंपरा का निरंतर जीवित रहना
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प्राचीन धर्म और सभ्यता के मिलन का अद्वितीय संगम
निष्कर्ष
यह मंदिर सिर्फ पत्थरों का ढेर नहीं
एक अनवरत जलती लौ है
जो बताती है कि सनातन संस्कृति ने समय को हराकर
अपने अस्तित्व को जीवित रखा है!
सभ्यता बदली, राजवंश मिटते गए
पर बिहटा बुजुर्ग का बालाजी विश्वनाथ मंदिर
अब भी अपनी प्राचीनता का गीत गाता है…

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