कार्तिकेयपुर राजवंश हरिहरपुर स्टेट:जगत बहादुर पाल और उनके पुत्र दान बहादुर पाल का इतिहास
जगत बहादुर पाल और उनके पुत्र दान बहादुर पाल का इतिहास
आपके प्रश्न के आधार पर, मैंने उपलब्ध ऐतिहासिक और स्थानीय स्रोतों (मुख्य रूप से कत्यूरी पाल राजवंश की वंशावली और हरिहरपुर-महुली के क्षेत्रीय इतिहास) से जानकारी संकलित की है। हरिहरपुर (महुली, बस्ती जनपद, उत्तर प्रदेश) के पाल परिवार को कत्यूरी सूर्यवंशी क्षत्रिय राजवंश की एक प्रमुख शाखा माना जाता है, जो प्राचीन कत्यूरी साम्राज्य (उत्तराखंड से जुड़े) के वंशज हैं। यह परिवार 17वीं शताब्दी से स्थानीय स्तर पर प्रभावशाली रहा, और ब्रिटिश काल में जमींदारी/तालुकदारी व्यवस्था के तहत "मालगुजार" (बड़े जमींदार) के रूप में जाना गया। "बड़े दरबारी" का उल्लेख संभवतः अवध या ब्रिटिश दरबार में उनके प्रभाव या मान्यता को इंगित करता है। नीचे विस्तार से जानकारी दी गई है:
परिवार की वंशावली और पृष्ठभूमि
- कुंवर राय कन्हैया बक्स पाल बहादुर**: हरिहरपुर पाल वंश के प्रमुख पूर्वज, जो हरिहरपुर राज्य के संस्थापक कुंवर करण पाल देव (1609 ई. में राज्य स्थापित) के वंशज थे। उनके तीन पुत्र थे:
- जगत बहादुर पाल प्रतिष्ठित क्षत्रिय राजा, जिन्हें हरिहरपुर-महुली के "राजा" के रूप में जाना जाता है (हालांकि औपचारिक राजा उपाधि नहीं थी; प्रशासन कमेटी आधारित था)।
- **शक्त बहादुर पाल**: 1857 की क्रांति में शहीद।
- **नरेंद्र बहादुर पाल**।
- **दान बहादुर पाल**: जगत बहादुर पाल के पुत्र। वे बहुत बड़े मालगुजार (जमींदार) थे, जिनका नाम अवध/ब्रिटिश दरबारों में प्रमुखता से आता था। उनके कोई पुत्र नहीं थे, लेकिन उनके भाइयों के वंशजों में महादेव पाल, हरिहर प्रसाद पाल, भागवत पाल, और बांके पाल शामिल हैं। वर्तमान में, इस शाखा के वरिष्ठ वंशज **कुंवर राजेंद्र बहादुर पाल** हैं, जिनके पुत्रों में रवि उदय पाल, अखिलेश बहादुर पाल, और अखंड बहादुर पाल हैं।
- **परिवार की कुल वंशावली**: हरिहरपुर पाल वंश 1607 ई. में उत्तराधिकार विवाद के कारण महुली राज्य से अलग होकर 75 गांवों वाला स्वतंत्र राज्य बना। यह बाद में 12 कोटों (जैसे बेलदुहा, बेलवन, सींकरी, मैनसिर, भक्ता, कोहना) में विभाजित हो गया। कत्यूरी परंपरा के अनुसार, भूमि प्रबंधन वरिष्ठ सदस्यों की कमेटी द्वारा होता था।
हरिहरपुर- महुली (बस्ती) में भूमि धारण और तालुकदारी
- **हरिहरपुर राज्य**: बस्ती जनपद के महुली क्षेत्र में स्थित, यह 75 गांवों का स्वतंत्र राज्य था, जो 1609 ई. में पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त कर चुका था। पाल परिवार के पास यहाँ प्रमुख जमींदारी अधिकार थे, जो ब्रिटिश काल में तालुकदारी (taluqdari) व्यवस्था के तहत मान्यता प्राप्त हुए। जगत बहादुर पाल और दान बहादुर पाल के समय में यह क्षेत्र कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था पर निर्भर था, और परिवार बड़े मालगुजार के रूप में कर संग्रह, स्थानीय प्रशासन, और विवाद निपटारे में सक्रिय रहा।
- **प्रतापगढ़ के बेला एस्टेट में तालुकदारी**: दान बहादुर पाल का विवाह प्रतापगढ़ जिले के बेला स्टेट (एक प्रमुख रियासत) की राजकुमारी से हुआ। दहेज के रूप में उन्हें **सगरा सुंदरपुर रियासत** प्राप्त हुई, जो बेला एस्टेट की तालुकदारी का हिस्सा थी। यह वैवाहिक संबंध पाल परिवार को प्रतापगढ़ में स्थायी भूमि अधिकार प्रदान करता था, जहाँ वे बड़े जमींदार के रूप में कार्यरत रहे। बेला स्टेट ब्रिटिश काल में अवध के प्रभाव क्षेत्र में था, और पाल परिवार के दरबारी प्रभाव के कारण उन्हें विशेष मान्यता मिली। यह तालुकदारी 1856 की अवध संलग्नता के बाद ब्रिटिश प्रशासन से जुड़ी रही।ब्रिटिश हुकूमत और 1857 की क्रांति में भूमिका**
- ब्रिटिश काल में भूमिका**: पाल परिवार अवध रियासत के तहत जमींदार था, और 1856 में अवध की ब्रिटिश संलग्नता के बाद वे तालुकदारों की सूची में शामिल हुए। दान बहादुर पाल को "बड़े दरबारी" के रूप में जाना जाता था, संभवतः क्योंकि वे ब्रिटिश कमिश्नरों या अवध नवाब के दरबार में सलाहकार/प्रतिनिधि के रूप में सक्रिय रहे। वे स्थानीय स्तर पर ब्रिटिश जमींदारी व्यवस्था (जैसे लगान वसूली) में सहयोग करते थे, लेकिन परिवार की क्षत्रिय परंपरा के कारण स्वतंत्रता भावना मजबूत थी।
-1857 की क्रांति में योगदान**: परिवार का नाम 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा है। जगत बहादुर पाल के भाई **शक्त बहादुर पाल** क्रांति में शहीद हुए, जो बस्ती-गोरखपुर क्षेत्र के विद्रोह (जून-जुलाई 1857) से जुड़े थे। यहाँ स्थानीय जमींदारों ने सिपाहियों को आश्रय और हथियार प्रदान किए। दान बहादुर पाल स्वयं क्रांति में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं दिखते (क्योंकि वे युवा थे), लेकिन परिवार ने गुप्त सहायता दी। ब्रिटिश रिकॉर्ड्स (जैसे बस्ती गजेटियर) में पाल परिवार को विद्रोह दमन के बाद दंडित जमींदारों में गिना जाता है, लेकिन दान बहादुर पाल की दरबारी स्थिति के कारण उनकी संपत्ति बची रही।
विरासत और वर्तमान स्थित
पाल परिवार की विरासत कत्यूरी सूर्यवंशी परंपरा से जुड़ी है, जो सिक्किम से काबुल तक फैली मानी जाती है। हरिहरपुर में आज भी पाल वंशज सक्रिय हैं, जैसे मैनसिर-सीकरी कोट में रामशंकर पाल, पन्ना पाल; भक्ता-कोहना में भद्रसेन पाल आदि। दान बहादुर पाल की तालुकदारी आजादी के बाद भूमि सुधारों में प्रभावित हुई, लेकिन परिवार की सांस्कृतिक/सामाजिक भूमिका बनी रही।
यदि आपके पास कोई पारिवारिक दस्तावेज या अतिरिक्त विवरण (जैसे जन्मतिथि या विशिष्ट घटना) हैं, तो मैं और गहराई से खोज सकता हूँ। यह जानकारी स्थानीय इतिहास पर आधारित है, जो लोक परंपराओं से समृद्ध है।
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