मन को नियंत्रित कैसे करें
सामान्यतः लोग पूंछते हैं कि मन को नियंत्रित कैसे करें
??? जीवन में सफलता के लिए क्या करें???
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पहले तो मन और शरीर के संबंध में जानना होता है।जो कि ध्यान साधना करने से सहज ही पता लग जाता है।
जबतक हमें यही पता न हो कि हमारा स्वयं पर नियंत्रण है कि नहीं, तबतक मन पर नियंत्रण की बात समझ में नहीं आती है। जिसका स्वयं पर ही अधिकार नहीं होगा वह अन्य पर अधिकार कर ही नहीं सकता। ऐसे लोग दूसरों पर नियंत्रण का भ्रम पालकर जीते रहते हैं। ऐसे लोगों के जीवन में कभी कभी अंधे के हाथ बटेर लगने जैसी सफलता मिल सकती है। लेकिन वह अपवाद होती है उसे पाने में उनका विशेष हाथ नहीं होता है। उनको जीवन में अधिकतर असफलता ही हाथ लगती है।
जिनका स्वयं पर नियंत्रण होता है उनके जीवन में असफलता अपवाद होती है। अधिकतर ऐसे लोग सफल होते रहते हैं।
पहले तो यह परीक्षण करना होता है कि वास्तव में हमारा स्वयं पर नियंत्रण है भी कि नहीं। इसके लिए कभी एकान्त में एक घंटे शांत बैठने का संकल्प करें। और शांति से बैठें, कोई विचार नहीं, कोई निर्णय नहीं करें।जो भी हो रहा है उसे अनुभव करें। शरीर को स्थिर रखें नो मोशन की स्थिति में रहें। शीघ्र ही पता चल जाएगा कि हमारा स्वयं पर कितना नियंत्रण है। दस पन्द्रह मिनट में शरीर के अंग बाधा डालने लगेंगे।आप शांत नहीं रह पायेंगे।पैर हिला देंगे या हाथ हिलायेंगे, शरीर की स्थिति में परिवर्तन करेंगे। क्योंकि अनियंत्रित मन अराजक होता है। अराजक मन वाले व्यक्तियों के शरीर में प्राण ऊर्जा भी अराजक स्थिति में होती है। अंगों में स्थित अराजक ऊर्जा व्यक्ति को चैन से नहीं बैठने देती है।
जिस व्यक्ति के शरीर में प्राण ऊर्जा जितनी अधिक अराजक स्थिति में होती है।वह उतना ही अधिक अशांत होता है। ऐसे लोग कहीं बैठे होंगे तो अपने अंग हिलाते रहेंगे जैसे बैठे बैठे पैर हिलाते रहेंगे,या बिना मतलब हाथ हिलायेंगे, अंगुलियां मरोड़ेंगें। बार बार अपनी स्थिति परिवर्तित करते रहेंगे।वे ऐसा इसलिए करते रहते हैं कि इस तरह वे अपने शरीर की अराजक प्राण ऊर्जा को बाहर निकालते रहते हैं, रिलीज करते रहते हैं।
ऐसा करना अपनी प्राण ऊर्जा का अपव्यय करना होता है। और वे लोग अनजाने में अज्ञान में अपनी प्राण ऊर्जा को व्यर्थ में बर्बाद करते रहते हैं।
योग में विभिन्न प्रकार की योग मुद्राओं का उपयोग शरीर की अराजक प्राण ऊर्जा को व्यवस्थित करने के लिए किया जाता है। कठिन श्रम साध्य प्राणायाम आदि का उद्देश्य अराजक प्राण ऊर्जा से मुक्त होना और उसे व्यवस्थित करना होता है।
अतः जो लोग ध्यान साधना करना चाहते हैं। उन्हें पहले पहल सीधे शांत नहीं बैठना चाहिये। उन्हें चाहिए कि पहले वे व्यायाम आदि करके, दौड़ लगा कर शरीर को थोड़ा थका लें। इससे उनकी अराजक प्राण ऊर्जा का वेग कुछ कम होगा और वे सहजता से बैठ सकेंगे।
ध्यान अवस्था में स्वयं की प्रक्रिया का गहनता से निरीक्षण करते रहें। आपने ही संकल्प लिया है,आप ही उस संकल्प में बाधा डालने वाले मन को सहज ही पकड़ भी लेंगे।व्रत उपवास का भी मुख्यतः उद्देश्य संकल्प शक्ति का परीक्षण करना और उसे सशक्त करना होता है।जब हम अपने संकल्प को ठीक ठीक पूरा करने में सफल होते हैं,तब हमारी संकल्प शक्ति में वृद्धि होती है। अतः जो संकल्प कर लिया जो विचार निश्चित कर लिया, उसे दृढ़ता से पूरा करें। जैसे यह निश्चित कर लिया कि हम नियमित एक घंटे ध्यान करेंगे तो हर हाल में नियमित एक घंटे ध्यान करते रहें।
रसरी आवत जात से सिल पर परत निसान।
करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।। साभार फेस बुक निसर्गम वॉल
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