बांस की जानकारी
वंश वृद्धि का पेड़ 🤗🤗
बाँस एक सपुष्पक, आवृतबीजी, एक बीजपत्री पोएसी कुल का पादप है। इसके परिवार के अन्य महत्वपूर्ण सदस्य दूब, गेहूँ, मक्का, जौ और धान हैं। यह पृथ्वी पर सबसे तेज बढ़ने वाला काष्ठीय पौधा है। इसकी कुछ प्रजातियाँ एक दिन (२४ घंटे) में १२१ सेंटीमीटर (४७.६ इंच) तक बढ़ जाती हैं। थोड़े समय के लिए ही सही पर कभी-कभी तो इसके बढ़ने की रफ्तार १ मीटर (३९ मीटर) प्रति घंटा तक पहुँच जाती है। इसका तना, लम्बा, पर्वसन्धि युक्त, प्रायः खोखला एवं शाखान्वित होता है। तने को निचले गांठों से अपस्थानिक जड़े निकलती है। तने पर स्पष्ट पर्व एवं पर्वसन्धियाँ रहती हैं। पर्वसन्धियाँ ठोस एवं खोखली होती हैं। इस प्रकार के तने को सन्धि-स्तम्भ कहते हैं। इसकी जड़े अस्थानिक एवं रेशेदार होती है। इसकी पत्तियाँ सरल होती हैं, इनके शीर्ष भाग भाले के समान नुकीले होते हैं। पत्तियाँ वृन्त युक्त होती हैं तथा इनमें सामानान्तर विन्यास होता है। यह पौधा अपने जीवन में एक बार ही फल धारण करता है। फूल सफेद आता है। पश्चिमी एशिया एवं दक्षिण-पश्चिमी एशिया में बाँस एक महत्वपूर्ण पौधा है। इसका आर्थिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। इससे घर तो बनाए ही जाते हैं,
प्रोडक्ट बनता है बस कारीगरी आनी चाहिए
कागज बनाने के लिए बाँस उपयोगी साधन है, जिससे बहुत ही कम देखभाल के साथ-साथ बहुत अधिक मात्रा में कागज बनाया जा सकता है। इस क्रिया में बहुत सी कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती हैं। फिर भी बाँस का कागज बनाना चीन एवं भारत का प्राचीन उद्योग है। चीन में बाँस के छोटे बड़े सभी भागों से कागज बनाया जाता है। इसके लिए पत्तियों को छाँटकर, तने को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर, पानी से भरे पोखरों में चूने के संग तीन चार माह सड़ाया जाता है, जिसके बाद उसे बड़ी बड़ी घूमती हुई ओखलियों में गूँधकर, साफ किया जाता है। इस लुग्दी को आवश्यकतानुसार रसायनक डालकर सफेद या रंगीन बना लेते हैं और फिर गरम तवों पर दबाते तथा सुखाते हैं। , चाइनीज बांस स्मार्ट लोग घर में लगाते है लेकिन देसी बस जिसके फायदे बहुत है जानकारी कम ही लोगो को है , जॉब गांव से जुड़े है उन्हें बसवारी के बारे में पता होगा खैर मुद्दे पर आते है इसकी खेती इतनी शानदार है कि इससे बस एक बार लगाना है , थोड़ा वक्त लगता है फिर आपको बिना, खाद , पानी के कई पुश्तों तक सेवा मिलता रहेगा , प्रकृति का वरदान है
भारत में बांस के उपयोग का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है,बांस को भारतीय धर्म और वस्तु शास्त्र में बहुत शुभ माना जाता है,बांस से वृक्षों पर मचान बनाया जा सकता है,बांस से पाट जैसी नाव भी तैयार की जाती है।
बांस की संटी या किमची का उपयोग अगरबत्ती बनाने में भी होता है,बांस से झोपड़ी या घर भी मनाया जाते हैं।
भारतीय सनातन परंपराओं में बांस का जलाना निषिद्ध है। इससे वंश नष्ट होने की मान्यता है। माना जाता है कि बांस जलाने से पितृदोष लगता है,बांस का पेड़ घर के आसपास लगाना शुभ होता है, आधुनिक लुक देने में भी बांस का प्रयोग किया जाने लगा है,भारतीय वास्तु विज्ञान में भी बांस को शुभ माना गया है। शादी, जनेऊ, मुण्डन आदि में बांस की पूजा एवं बांस से मण्डप बनाने के पीछे भी यही कारण है, ऐसा भी माना जाता है कि बांस का पौधा जहां होता है वहां बुरी आत्माएं नहीं आती हैं, बांस की डलिया, टोकरी, चटाई, बल्ली, सीढ़ी, खिलौने, कागज सहित कई वस्तुएं बनती हैं,पूर्वोत्तर इलाके में बांस की छतरी भी बनाते हैं,बांस के डंडे होते हैं जिन्हें लट्ठ भी कहते हैं। पुलिस वालों के पास बांस के डंडे होते हैं, भारत में 136 किस्म के बांस पाए जाते हैं, बांस की खेती भी होती है। पूरे भारत में 13.96 मिलियन हेक्टेयर में बांस की खेती होती है,बांस का तेल भी बनाया जाता है, बांस के फर्नीचर भी बनते हैं जैसे सोफा, कुर्सी, अलमारी आदि। कृषि यंत्र बनाने सहित अन्य साज-सज्जा का समान बनने के लिए भी बांस का उपयोग किया जाता है,कहते हैं कि कहीं-कहीं इसकी खाने योग्य प्रजातियों से अचार भी बनाया जाता है । Sabhar facebook
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें