नग्न होने से महावीर नहीं बना जाता!- महावीर बनना हो तो नग्न भी होना पड़ता है! यह सत्य है!
-The Spiritual Catalyst
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तुम गंगा स्नान करके आये मुक्त होने के लिये परंतु गंगा में जो मेंढक रहता है उसने तो जीवन भर उसी गंगा में स्नान किया तो तुम दोनों में से पहले मुक्त कौन होगा!?🤷♂️😃
पागलों! आप जिसे यात्रा का नाम देते हो वह ठीक ठीक सोचो तो आपके लिये एक पिकनिक है महज़!
अध्यात्म reel का नहीं feel का विषय है! केदार नाथ, उज्जैन, अमरनाथ, कामाख्या, बगलामुखी-कुछ नहीं छोड़ा! ख़ुद ईश्वर भी कनफ़ुस्ड है आपके इस एप्रोच से की भाई एक फिक्स कर की कौन तेरा इष्ट है!?😃🤦🏻♂️
घूमे सब ज्योतिर्लिंग-सब शक्तिपीठ अच्छा ही है क्योकि इनसे मन में एक भाव जग़ता है परंतु इतना घूमके भी तुम तो वही के वही रहे ना! बेबस, लाचार, दुःखी, पीड़ित, अकेले, कभी छोटी बात में एकदम खुश कभी फ़िज़ूल की बात पर एकदम व्यग्र और दुःखी! अंत में सबकुछ पाते हुए भी ख़ाली!!
तीर्थ स्थान और आश्रम हमे सुकून दे सकते है कुछ वक्त का लेकिन शांति नहीं! हमने हमेशां बाहरी यात्रा की है! स्थूल और भौतिक स्तर पर! हम हमेशां व्यक्ति, लिबास, घटना, स्थल यही सब पकड़ते है! तत्व रूप को कोई नहीं पकड़ता!
मीरा ने कृष्ण को साधा और पाया तो हम मीरा तत्व समझना छोड़ कर मीरा का मंदिर बना दिये! माँ काली ने मुंड की माला पहनी तो तुम भी कही से फ़ाइबर की बनी हड्डी की माला उठा लाए! महाभारत- रामायण हज़ारो साल पहले घट गई! तुमने भगवद्गीता के तत्व रूप को साइड में रखके चर्चा भी किसकी की!? भीम की गदा का वजन क्या था? कर्ण की हाईट कितनी थी!? रावण की लंका का सोना कहाँ से आया!? सीता को exactly कौन से लोकेशन पे रखा था!? ज़रूरी है यह सब जानना लेकिन इन्फ़ॉर्मेशन और ज्ञान में फ़र्क़ होता है! यह जो बात जानने में हमे रोमांच होता है ना वह महज़ इन्फ़ॉर्मेशन है! यह आपको कही पहुँचायेगी नहीं!
एसी कई रामायण और महाभारत काल चक्र में घटित हो गई और ब्रह्मांड के किसी एक छौर पर अभी भी घटित हो रही होगी! Multiverse Theory बहुत अच्छी लगती है ना! बस! यही है सब!😁 तो आप कितने अवशेष को पकड़ोगे!? कहाँ कहाँ घुमोगे!?
भूखा रहना, वनस्पति खाना, बिना कोई परंपरा में दीक्षा लिए नंगे होकर घूमना, संन्यासी ना हो कर भी त्रिपुण्ड, माला, यह-वह… इनसे कुछ लोग आकर्षित हो सकते है! लेकिन आप वहीं रहोगे!
शिव ने शक्ति को बहुत अच्छे से समझाया है कि मार्ग कोई भी हो वैष्णवाचार, वैदाचार, वामाचार, दक्षिणाचार या कौलाचार- जब तक इंसान आत्मज्ञानी ना बना, जब तक रहस्यों को गुरु से ना समजा तब तक सब क्रिया आडंबर है! चाहे अभिचारी क्रिया हो या ध्यान!
ध्यान में भी सर्पों का दिखना, हवा में तैरना, अणु जितना सूक्ष्म हो जाना, अकृतिया दिखना, वाइब्रेशन आना, उछलना, यह सब आपके sub conscious mind का reflaction है! और कुछ कुछ ऊर्ज़ाओ का आंदोलन! लेकिन इसे समाधि नहीं कह सकते!
प्रभु! सही में जब समाधि लगती है तब द्रष्टा ही नहीं बचता! देखने वाला ही नहीं तो वर्णन कैसे करोगे क्या हुआ!? आपको तो सब दिखाई देता है! तो समाधि कैसी!?☺️🔯
…..अंत में शिव मुख से बोला गया एक श्लोक रखके जाता हूँ!🔥
ॐ!
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तृणपर्णोदकाहारः सततं वनवासिन:।
हरिणादीमृगा देवि योगिनस्ते भवन्ति किम्।।
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घास खाकर जीवन-यापन करने वाले, कभी पत्तो के भोजन पर ही व्रत रखने आदि का प्रदर्शन करने वाले, जल पीकर ही रहने का व्रत लेने वाले और जंगलों के एक कोने में सबसे अलग थलग रहकर जीने वाले यदि आदियोगी कहलाने की अधिकारी है, वे हिरण आदि मृग भी जो तृण, घास और पानी पीकर ही जी रहे है, वे भी योगी क्यों नहीं कहे जा सकते!? किन्तु ये योगी नहीं होते!
[कुलार्णव तन्त्रम्- प्रथम उल्लास- श्लोक ८१]
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