कुञ्जिका स्तोत्र पाठ विषय में भ्रांति है कि इसके पाठ के फल से दुर्गापाठ का फल मिल जाता है तो फिर सप्तशती के पाठ की क्या जरुरत है अतः सप्तशती पाठ के बाद में करें ।
परन्तु इसी स्तोत्र में लिखा है कि "इदं तु कुञ्जिका स्तोत्रं - मंत्र जागर्तिहैतवे" अतः मंत्र के जाग्रति की प्रार्थना तो मंत्र जपने से पहिले ही करनी चाहिये । जैसे के माला मंत्रो में ( ॐ मां माले महामाये........) प्रयोग में आया है ।
पुनः तंत्र ग्रंथो में लिखा है कि "भूत लिपि" के प्रयोग बिना मंत्र सिद्ध नहीं होता है । इस स्तोत्र में "अं, कं, चं, टं, तं, पं, यं, शं" शब्द आये है इनका अर्थ है, अ वर्ग, क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग, प वर्ग, य वर्ग, श वर्ग अर्थात समस्त मातृका का उच्चारण स्मरण है । अथ इसमें "भूत लिपि'" जाग्रति की सूक्ष्म क्रिया का समावेश है ।
मंत्र जागृति के २७ जप रहस्य हैं उनमें दोहन, आकर्षण, अमृतीकरण, दीप्तीकरण आदि हैं उनका प्रयोग इस स्तोत्र में नवार्ण मंत्र में है । उनमें आये बीजाक्षरों को देखने से मिलता है । यथा
ग्लौं (अशुद्धिनिवारण व दोहन हेतु ) ।
क्लीं जूं सः (अमृतीकरण हेतु )
आकर्षण हेतु ।
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल- दीप्तीकरण हेतु । अतः इस का पाठ नवार्ण जप से पहिले व दुर्गापाठ से पहिले
॥ सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् ॥
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत् ॥१॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥२॥ कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् । ॥३॥
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति ।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।
पाठमात्रेण संसिद्धयेत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥४॥
अथ मन्त्रः
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥
॥ इति मन्त्रः ॥
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥१॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि॥२॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ॥३॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ॥४॥
विच्चे चाऽभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ॥५॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥६॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥७॥
अं कं चं टं तं पं यं शं बिन्दुराभिर्भव ।
आविर्भव हंसं लंक्षं मयि जाग्रय जाग्रय ।।
त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ॥८॥
म्लां म्लीं म्लूं दीव्यती पूर्णा कुञ्जिकायै नमो नमः ।
सां सीं सप्तशतीं सिद्धिं कुरुष्व जप-मात्रतः ॥९॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे ।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥
यस्तु कुञ्जिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे
कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
॥ ॐ तत्सत् ॥ साभार दीपक शर्मा फेस बुक

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