पत्थरों से बनी औखली, शिलबठा और घाराट पारंपरिक भारतीय उपकरण
पत्थरों से बनी औखली, शिलबठा और घाराट पारंपरिक भारतीय उपकरण हैं, जो मुख्य रूप से अनाज, मसाले और अन्य खाद्य पदार्थों को पीसने या कूटने के लिए उपयोग किए जाते हैं। ये पुराने समय में घरेलू और कृषि कार्यों में अत्यधिक महत्वपूर्ण थे और आज भी कुछ ग्रामीण इलाकों में उपयोग किए जाते हैं।
1. औखली (ओखली) और मूसल
औखली पत्थर या लकड़ी से बनी एक गहरी कटोरी जैसी होती है, जिसमें अनाज या मसाले डालकर कूटा जाता है।
इसे पीटने के लिए एक लंबा और मजबूत लकड़ी या धातु का डंडा उपयोग किया जाता है, जिसे मूसल कहा जाता है।
इसका उपयोग गेहूं, धान, और मसाले कूटने में किया जाता था।
2. शिलबठा (सिलबट्टा)
यह दो पत्थरों से बना होता है—एक सपाट पत्थर जिसे शिला या सिल कहा जाता है और दूसरा बेलनाकार पत्थर जिसे बट्टा कहते हैं।
इसका उपयोग मुख्य रूप से मसाले, चटनी और औषधीय जड़ी-बूटियों को पीसने के लिए किया जाता था।
यह भारतीय रसोई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था, खासकर जब बिजली से चलने वाले मिक्सर उपलब्ध नहीं थे।
3. घाराट (पनचक्की या जलचक्की)
यह एक पारंपरिक जल-चालित चक्की होती है, जिसका उपयोग गेहूं, मक्का, जौ आदि अनाज पीसने के लिए किया जाता था।
पहाड़ी क्षेत्रों में यह विशेष रूप से प्रचलित थी, जहां नदी या नाले के पानी की धारा से यह चक्की चलती थी।
यह एक पर्यावरण-अनुकूल और बिना बिजली के चलने वाली तकनीक थी, जो अब आधुनिक मशीनों के आने से कम हो गई है।
औखली, शिलबठा और घाराट भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। आधुनिक मशीनों के आने से इनका उपयोग कम हो गया है, लेकिन आज भी कुछ स्थानों पर पारंपरिक तरीकों को अपनाया जाता है, खासकर पहाड़ी और ग्रामीण क्षेत्रों में।
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पोस्ट साभार Priyanka Bisht ji ki वॉल से
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