सच्चे प्रेम की तलाश में दुनिया पागल है:ऋतु सिसोदिया
तुम्हारे अंतर्मन की गहराई में जो ह्रदय सतत्त निरंतर धड़क रहा है वह उस पर्मात्मा का अनंत व असीम प्रेम ही तो है जो तुम्हारे ही भीतर विद्यमान है ,ह्रदय ही वह केंद्र है जो हमे भक्ति से जोड़ता है
किन्तु बुद्धि के माध्यम से हम प्रेम भक्ति व आनंद प्राप्त करना चाहते है
ह्रदय से सम्बन्ध को पोषित करना नही
फिर भी सच्चे प्रेम की तलाश में दुनिया पागल है और व्यक्ति विशेष के पीछे ताउम्र भागता है किंतु हाथ कुछ नही,, बल्कि विरह ,तड़प हिस्से आती है दुख और पीड़ा का अनुभव कराती है,,और स्वार्थी मनुस्य प्रेम को ही छल व प्रपंच से प्राप्त करने का प्रयास करता है जबकि प्रेम तो ह्रदय का सम्बन्ध है जहां पारदर्शिता है
मन की अशांति के कारण आपकी खोज सत्य की ओर नही थी आद्यत्मिकता की ओर विरले ही उन्मुक्त होते है जो सुखी व सानन्दित है सांसारिक कुचक्र से मुक्त है
मूल्यांकन करना आसान है,समझना कठिन है।
समझने के लिए करुणा, धैर्य और यह मानने की इच्छा चाहिए कि अच्छे दिल भी कभी-कभी गलत तरीकों का चुनाव कर सकते हैं। यह सामाजिक दृस्टिकोण है
किन्तु एकांतचयन व्यक्तिगत निर्णय है
मूल्यांकन करने से हम अलग हो जाते हैं,
लेकिन समझने से हम बढ़ते हैं …
स्वयम के साथ जब हो तो ह्रदय की प्रत्येक धड़कन को सुने ह्र्दयचक्र की महसूस कीजिये यदि धड़कन बन्द हो जाये तो जीवन की संभावना समाप्त हो जाती है
ईश्वर का धन्यवाद कीजिये खूबसूरत जीवन का जो उपलब्ध है उसका आनंद अनुभव करें
ये संसार एक भरम है यहाँ दिल से अधिक सौदे दिमाग से होते है इसलिए सब दिलजले बस्ते है
स्त्री - मैं सब लेकर गयी निर्मल मन से एक ह्र्दयविहीन दिलजले के प्रेम, समर्पण, सहनशीलता, धैर्य, मर्यादा, विवेक
,अफसोस.!! उसने सिर्फ भौतिकता देखी..पुरुष
ह्रदय नही उसने देह को चाहा रूह को नही,,,,,
उसे खबर ही नही कहानी समाप्त ही चुकी,, क्योंकि उसे लगता था कि जब चाहेगा लौट आएगा अपने किरदार में पर अब ये मुमकिन नहीं,,
क्योंकि एकांत ही आनंद है आत्मोथान आत्महित आत्मकल्याण ही सर्वोपरि आत्मा आनंद से भर जाएगी
जब स्वतंत्र रूप से विचरण करो आत्मनिर्भर होकर चलो
अपने होने का अर्थ यह हरगिज नही की आपको फॉर्ग्रंटेड लिया जाए इससे पूर्व की तुम बंजर हो जाओ स्वयम को संरक्षित करो ,,स्त्री आद्यात्मिक्ता के उच्च शिखर को जीवंत करती है,, वीरांगनाओं की गौरव गतो से आनभिज्ञ हमारा मानव समाज,,,,दम तोड़ते नजर आती भारतीय संस्कृति
हम नायक है अपने सफर के, चलते रहो ना रुकना कभी
चरैवेति चरैवेति साभार ऋतु सिसोदिया
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