मूर्ख को मूर्ख भाएंगे,, समझदार को मूर्ख नही भाएंगे
मूर्ख को मूर्ख भाएंगे,, समझदार को मूर्ख नही भाएंगे
या तो दूरी बनाएंगे या समझाकर सत्य से अवगत कराएंगे,,विफल होने से मौन हो जाएंगे और मूर्खो को उनके हाल पर छोड़ देंगे
मर्यादाएं स्त्री के लिए बनाई गई तो पुरुषो के लिए भी मर्यादाएं सुनिश्चित हो
आत्मनिर्भर व स्वतंत्र सोच की महिला ही गुलामी मानसिकता वाले परिवार के आंखो की किरकिरी होती हैऔर यह भी कटु सत्य है कि स्त्री ही स्त्री की शत्रु भी क्योंकि उस मूर्ख अयोग्य ने ताउम्र मांनसिक गुलामी को स्वीकार किया,,स्वयम के अस्तित्व को समाप्त कर दिया परिवार को एक सूत्र से बंधे रखने के लिए झूट छल प्रपंचो का सहारा लिया,, सत्य के साथ चलने वाली ईश्वरीय न्यायव्यवस्था का अनुपालन करने वाली स्वतंत्र सोच की विकसित नारी जब झूठे आडम्बरो का खंडन करती है तो उनके झूठे अहंकार को ठेस पहुंचती है फिर सत्य को दबाने की नाकाम कोशिशें की जाती है
न्याग नागिन चील गिद्ध कौवे सब एक पक्ष में झुंड में
था सत्य अकेला निष्पक्ष निर्भीक डटा है,, तो उसके मनोबल को गिराने हेतु चरित्र हनन ,, शारीरिक मानसिक यातनाएं ये सब नारी के सहयोग से पुरुष को बल दिया जाता है,,
सत्य को दबाने झुठलाने का प्रयास किया जाता है,,यह ही तो मानसिक अपंगता है महिलाओ की और पुरुष भी भृमित है,, जबकि नारी स्वयम निर्माता है माता है
फिर कुमाता कैसे बन जाती है क्योंकि वह अधर्म अन्याय से लड़ने की बजाय रोटी कपड़ा छत के लिए जीवन व सिद्धात से समझौता कर लेती है और यही गलत धारणा को सत्य समझ जीवन जीती है और पतन को अग्रसर होती है,,
किन्तु जब सत्य का चयन करती है विद्रोही बनना बनकर नितांत अकेली ही रनक्षेत्र में चन्डि बन कर शत्रु का दमन करती है यही श्रेस्ठ स्त्री की पहचान है
ऐसी स्त्री ही सभ्य समाज का निर्माण कर सकती है
साभार ऋतु सिसोदिया
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